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Sad Poetry


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मैं ''इश्क़'' लिखूं तुझे हो जाए...

चल आ इक ऐसी ''नज़्म'' कहूं, जो ''लफ़्ज़'' कहूं वो हो जाए.. मैं ''अश्क'' कहूं तो इक आंसू , तेरे गोरे ''गाल'' को धो जाए.. मैं ''आ'' लिखूं तो आ जाए, मैं ''बैठ'' लिखूं तो आ बैठे.. मेरे ''शाने'' पर सर रखे तो, मैं ''नींद'' कहूं तो सो जाए.. मैं काग़ज़ पर तेरे ''होंठ'' लिखूं , तेरे ''होठों'' पर मुस्कान आए.. मैं ''दिल'' लिखूं तू दिल थामे, मैं ''गुम'' लिखूं वो खो जाए.. तेरे ''हाथ'' बनाऊं पेंसिल से, फिर ''हाथ'' पे तेरे हाथ रखूं.. कुछ ''उल्टा-सीधा'' फ़र्ज़ करूं कुछ ''सीधा-उल्टा'' हो जाए.. मैं ''आह'' लिखूं तो हाए करे, ''बेचैन'' लिखूं बेचैन हो तू .. फिर मैं बेचैन का ''बे'' काटूं , तुझे ''चैन'' ज़रा सा हो जाए.. अभी ''ऐन'' लिखूं तू सोचे मुझे, फिर ''शीन...

तू नहीं होता तो हर शय में कमी रहती है..

दोस्त भी मिलते हैं महफ़िल भी जमी रहती है  तू नहीं होता तो हर शय में कमी रहती है  अबके जाने का नहीं मौसम गर ये शायद  मुस्कुराएं भी तो आंखों में नमी रहती है  इश्क़ उम्रों की मुसाफ़त है किसे क्या मालूम ? कब तलक हमसफ़री, हमक़दमी रहती है कुछ दिलों में नहीं खिलते कभी चाहत के गुलाब  कुछ जज़ीरों पर पे सदा धुंध जमी रहती है  ( अहमद फ़राज़ )