तू ना समझेगा इस मोहब्बत को
सर पे तेरे सवार थोड़ी है ।।
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अहल-ए-दिल उसे दिल नहीं कहते
जो तड़पता ना हो किसी के लिए
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एक मोहब्बत काफ़ी है
बाक़ी उम्र इज़ाफ़ी है
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दिल पे आए हुए इल्ज़ाम से पहचानते हैं
लोग अब मुझको तेरे नाम से पहचानते हैं
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कुछ इस अदा से आज वो पहलू नशीं रहे
जब तक हमारे पास रहे, हम नहीं रहे
(जिगर मुरादाबादी)
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तुमने समझा ही नहीं आंख में ठहरे दुख को
तुम भी हंसती हुई तस्वीर पे मर जाते हो
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उससे पूछो अज़ाब रस्तों का
जिसका साथी सफ़र में बिछड़ा हो
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तुमने समझा ही नहीं आंख में ठहरे दुख को
तुम भी हंसती हुई तस्वीर पे मर जाते हो
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उससे पूछो अज़ाब रस्तों का
जिसका साथी सफ़र में बिछड़ा हो
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