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Two Lines Poetry

तू ना समझेगा इस मोहब्बत को
सर पे तेरे सवार थोड़ी है ।।

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अहल-ए-दिल उसे दिल नहीं कहते 
जो तड़पता ना हो किसी के लिए 
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एक मोहब्बत काफ़ी है 
बाक़ी उम्र इज़ाफ़ी है 
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दिल पे आए हुए इल्ज़ाम से पहचानते हैं 
लोग अब मुझको तेरे नाम से पहचानते हैं 
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कुछ  इस अदा से आज वो पहलू नशीं रहे 
जब तक हमारे पास रहे, हम नहीं रहे 
(जिगर मुरादाबादी)
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तुमने समझा ही नहीं आंख में ठहरे दुख को
तुम भी हंसती हुई तस्वीर पे मर जाते हो
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उससे पूछो अज़ाब रस्तों का
जिसका साथी सफ़र में बिछड़ा हो
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