दोस्त भी मिलते हैं महफ़िल भी जमी रहती है तू नहीं होता तो हर शय में कमी रहती है अबके जाने का नहीं मौसम गर ये शायद मुस्कुराएं भी तो आंखों में नमी रहती है इश्क़ उम्रों की मुसाफ़त है किसे क्या मालूम ? कब तलक हमसफ़री, हमक़दमी रहती है कुछ दिलों में नहीं खिलते कभी चाहत के गुलाब कुछ जज़ीरों पर पे सदा धुंध जमी रहती है ( अहमद फ़राज़ )